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पूछा ही नहीं उस ने कभी हाल हमारा | शाही शायरी
puchha hi nahin usne kabhi haal hamara

ग़ज़ल

पूछा ही नहीं उस ने कभी हाल हमारा

ख़्वाजा जावेद अख़्तर

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पूछा ही नहीं उस ने कभी हाल हमारा
बस यूँ ही गुज़र जाता है हर साल हमारा

रहती है ख़बर सारे ज़माने की हमें भी
फैला है बहुत दूर तलक जाल हमारा

मुश्किल है किसी काम का होना भी यहाँ पर
हो जाता है हर काम ब-हर-हाल हमारा

हम ने तो नुमाइश भी लगाई नहीं फिर भी
बाज़ार में चल जाता है हर माल हमारा

पहचान ज़माने से अलग ही है हमारी
मिलता नहीं हर एक से सुर-ताल हमारा

मुमकिन है कि बन जाएँ शहंशाह-ए-ग़ज़ल हम
वैसे तो इरादा नहीं फ़िलहाल हमारा