पूछा ही नहीं उस ने कभी हाल हमारा
बस यूँ ही गुज़र जाता है हर साल हमारा
रहती है ख़बर सारे ज़माने की हमें भी
फैला है बहुत दूर तलक जाल हमारा
मुश्किल है किसी काम का होना भी यहाँ पर
हो जाता है हर काम ब-हर-हाल हमारा
हम ने तो नुमाइश भी लगाई नहीं फिर भी
बाज़ार में चल जाता है हर माल हमारा
पहचान ज़माने से अलग ही है हमारी
मिलता नहीं हर एक से सुर-ताल हमारा
मुमकिन है कि बन जाएँ शहंशाह-ए-ग़ज़ल हम
वैसे तो इरादा नहीं फ़िलहाल हमारा
ग़ज़ल
पूछा ही नहीं उस ने कभी हाल हमारा
ख़्वाजा जावेद अख़्तर

