पीले पीले चेहरों में उभरी है आज की शाम
कर सकता हूँ क्यूँकर मैं ये शाम तुम्हारे नाम
सैल-ए-ज़माँ में डूब गए मशहूर-ए-ज़माना लोग
वक़्त के मुंसिफ़ ने कब रक्खा क़ाएम उन का नाम
शोहरत-ए-आम में ज़र्रीं तम्ग़े थे दिल की तस्कीन
लेकिन क़ब्र के कतबे पर कब दर्ज हुए इनआ'म
जश्न-ए-मुरव्वत में लोगों की ऊँची उड़ी पतंग
मर्ग-ए-मुरव्वत में उन सब का 'अनवर' रोया नाम
ग़ज़ल
पीले पीले चेहरों में उभरी है आज की शाम
अनवर सदीद