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पी के कर लेता हूँ तौबा जब से ये दस्तूर है | शाही शायरी
pi ke kar leta hun tauba jab se ye dastur hai

ग़ज़ल

पी के कर लेता हूँ तौबा जब से ये दस्तूर है

रसा रामपुरी

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पी के कर लेता हूँ तौबा जब से ये दस्तूर है
दिल भी रौशन है मिरा मुँह पर भी मेरे नूर है

आह करता हूँ तो बरहम के लिए होते हो तुम
दर्द-मंदान-ए-मोहब्बत का यही दस्तूर है

ग़ैर से मिलने के शिकवे पर क़यामत ढा गया
उन का ये कहना कि दिल से आदमी मजबूर है

मैं सवाल-ए-वस्ल कर के उस अदा पर मिट गया
हँस के फ़रमाया कि ये दरख़्वास्त ना-मंज़ूर है

हश्र में अल्लाह से फ़रियाद उन के ज़ुल्म की
ऐ 'रसा' ये बात तो शर्त-ए-वफ़ा से दूर है