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फूलों के देस चाँद सितारों के शहर में | शाही शायरी
phulon ke des chand sitaron ke shahr mein

ग़ज़ल

फूलों के देस चाँद सितारों के शहर में

सलाम मछली शहरी

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फूलों के देस चाँद सितारों के शहर में
बर्बाद हो रहा हूँ निगारों के शहर में

मौज-ए-समन में ज़हर है बाद-ए-सबा में आग
दम घुट रहा है यासमीं-ज़ारों के शहर में

आँसू हूँ हँस रहा हूँ शगूफ़ों के दरमियाँ
शबनम हूँ जल रहा हूँ शरारों के शहर में

वो मैं हूँ जिस ने शोला-ए-साग़र उछाल कर
की है ख़िज़ाँ की बात बहारों के शहर में

ये क़िल'अ और ये मस्जिद-ए-शाह-ए-जहाँ का औज
किस दर्जा सर-निगूँ हूँ मनारों के शहर में

ऐ मेरी फ़ितरत-ए-तरब-आगीं ख़ता-मुआफ़
शर्मिंदा हूँ मैं ज़ुल्म के मारों के शहर में

बस मैं बनूँगा ख़ुसरव-ए-महताब ऐ 'सलाम'
सोचा है ये धुएँ के ग़ुबारों के शहर में