EN اردو
फूल थे बादल भी था और वो हसीं सूरत भी थी | शाही शायरी
phul the baadal bhi tha aur wo hasin surat bhi thi

ग़ज़ल

फूल थे बादल भी था और वो हसीं सूरत भी थी

मुनीर नियाज़ी

;

फूल थे बादल भी था और वो हसीं सूरत भी थी
दिल में लेकिन और ही इक शक्ल की हसरत भी थी

जो हवा में घर बनाए काश कोई देखता
दश्त में रहते थे पर ता'मीर की आदत भी थी

कह गया मैं सामने उस के जो दिल का मुद्दआ'
कुछ तो मौसम भी अजब था कुछ मिरी हिम्मत भी थी

अजनबी शहरों में रहते उम्र सारी कट गई
गो ज़रा से फ़ासले पर घर की हर राहत भी थी

क्या क़यामत है 'मुनीर' अब याद भी आते नहीं
वो पुराने आश्ना जिन से हमें उल्फ़त भी थी