फूल पे आ के बैठी तो ख़ुद पर उतरना भूल गई
ऐसी मस्त हुई वो तितली पर फैलाना भूल गई
ऐसे खिला वो फूल सा चेहरा फैली सारे घर ख़ुशबू
ख़त को छुपा कर पढ़ने वाली राज़ छुपाना भूल गई
कलियों ने हर भँवरे, तितली से पूछा है उस का नाम
बाद-ए-सबा जिस फूल के घर से लौट के आना भूल गई
अपने पुराने ख़त लेने वो आई थी मिरे कमरे में
मेज़ पे दो तस्वीरें देखीं ख़त ले जाना भूल गई
बरसों ब'अद मिले तो ऐसी प्यास भरी थी आँखों में
भूल गया मैं बात बनाना वो शर्माना भूल गई
साजन की यादें भी 'ख़ावर' किन लम्हों आ जाती हैं
गोरी आटा गूँध रही थी नमक मिलाना भूल गई

ग़ज़ल
फूल पे आ के बैठी तो ख़ुद पर उतरना भूल गई
ख़ावर अहमद