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फिर ये किस ने मुझे जगाया है | शाही शायरी
phir ye kis ne mujhe jagaya hai

ग़ज़ल

फिर ये किस ने मुझे जगाया है

उज़ैर रहमान

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फिर ये किस ने मुझे जगाया है
फिर से ख़्वाबों में कौन आया है

फिर से नम ये हुईं हैं क्यूँ आँखें
फिर तुम्हारा ख़याल आया है

फिर से रूठी है क्यूँ ये शहनाई
फिर से मातम का माह आया है

आरज़ू हो गई है फिर बेबाक
फिर ख़बर गर्म कोई लाया है

फिर नए साल की है तय्यारी
जश्न पर गोलियों का साया है

फिर चमन में रहेगा हंगामा
फिर नया फूल कोई आया है

फिर से बादल हैं आसमानों में
अब्र उम्मीदें ले कर आया है

फिर सज़ा का हुआ है अंदेशा
मुझ को तन्हाई में बुलाया है

फिर से तारीख़ बन गया मौज़ूअ
फिर से क़िस्सा नया बनाया है

फट रही है ये फिर से धरती क्यूँ
फिर से यज़्दाँ का क़हर आया है

घर हुआ है ख़ुदा का वीराँ फिर
फिर से आसेब इस पे छाया है

फिर से क़ानून ताक़ पर रक्खा
फिर से दंगाइयों को लाया है

देखो तो ग़ौर से वही ज़ालिम
फिर से चेहरा बदल के आया है

फिर से छाई है एक ख़ामोशी
फिर नया ज़ुल्म कोई ढाया है

फिर है बस्ती में एक बेचैनी
फिर नया फ़ित्ना आज़माया है

फिर से ख़तरा खड़ा है मुँह खोले
फिर से अपना हुआ पराया है

फिर से मंदिर में शंख फूंके हैं
फिर से गुम्बद में ख़ौफ़ आया है

साज़िशें बंद हों तो दम आए
फिर लगे देश लौट आया है