फिर कोई मुश्किल जवाँ होने को है
दोस्तों का इम्तिहाँ होने को है
झोंके दम साधे खड़े हैं चार-सू
कोई हंगामा यहाँ होने को है
भीग जाने पर भी जो बुझता न था
आज वो शो'ला धुआँ होने को है
ये बहारें और गुल बूटे निढाल
फ़स्ल-ए-गुल दौर-ए-ख़िज़ाँ होने को है
ज़िंदगी से कीजिए उम्मीद क्या
ज़िंदगी ख़ुद राएगाँ होने को है
ज़ब्त का हद से गुज़रना देखिए
राज़ आँखों से बयाँ होने को है
मंज़िल-ए-मक़्सूद जब आई नज़र
राहबर संग-ए-गराँ होने को है
ग़ज़ल
फिर कोई मुश्किल जवाँ होने को है
अमर सिंह फ़िगार