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फिर कोई मुश्किल जवाँ होने को है | शाही शायरी
phir koi mushkil jawan hone ko hai

ग़ज़ल

फिर कोई मुश्किल जवाँ होने को है

अमर सिंह फ़िगार

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फिर कोई मुश्किल जवाँ होने को है
दोस्तों का इम्तिहाँ होने को है

झोंके दम साधे खड़े हैं चार-सू
कोई हंगामा यहाँ होने को है

भीग जाने पर भी जो बुझता न था
आज वो शो'ला धुआँ होने को है

ये बहारें और गुल बूटे निढाल
फ़स्ल-ए-गुल दौर-ए-ख़िज़ाँ होने को है

ज़िंदगी से कीजिए उम्मीद क्या
ज़िंदगी ख़ुद राएगाँ होने को है

ज़ब्त का हद से गुज़रना देखिए
राज़ आँखों से बयाँ होने को है

मंज़िल-ए-मक़्सूद जब आई नज़र
राहबर संग-ए-गराँ होने को है