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फैली हुई है सारी दिशाओं में रौशनी | शाही शायरी
phaili hui hai sari dishaon mein raushni

ग़ज़ल

फैली हुई है सारी दिशाओं में रौशनी

ज़ीशान साजिद

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फैली हुई है सारी दिशाओं में रौशनी
लेकिन नहीं चराग़ की छाँव में रौशनी

अब तो पनपने वाली हैं रौशन-ख़यालियाँ
आई नई नई मिरे गाँव में रौशनी

इक हाथ दूसरे को सुझाई न दे मगर
हम ने छुपा रखी है रिदाओं में रौशनी

दीन-ओ-मआशियात-ओ-सियासत के पेशवा
ज़ेहनों में तीरगी तो अदाओं में रौशनी

सब लोग मशअ'लों की तमन्ना में ख़ार थे
गरचे पड़ी थी अपने ही पाँव में रौशनी

'ज़ीशाँ' सियाहियों के नुमाइंदा भी हैं हम
और हम ही चाहते हैं अताओं में रौशनी