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पेच रखते हो बहुत साहिबो दस्तार के बीच | शाही शायरी
pech rakhte ho bahut sahibo dastar ke bich

ग़ज़ल

पेच रखते हो बहुत साहिबो दस्तार के बीच

अहमद फ़राज़

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पेच रखते हो बहुत साहिबो दस्तार के बीच
हम ने सर गिरते हुए देखे हैं बाज़ार के बीच

बाग़बानों को अजब रंज से तकते हैं गुलाब
गुल-फ़रोश आज बहुत जमा हैं गुलज़ार के बीच

क़ातिल इस शहर का जब बाँट रहा था मंसब
एक दरवेश भी देखा उसी दरबार के बीच

कज-अदाओं की इनायत है कि हम से उश्शाक़
कभी दीवार के पीछे कभी दीवार के बीच

तुम हो ना-ख़ुश तो यहाँ कौन है ख़ुश फिर भी 'फ़राज़'
लोग रहते हैं इसी शहर-ए-दिल-आज़ार के बीच