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पत्थर में फ़न के फूल खिला कर चला गया | शाही शायरी
patthar mein fan ke phul khila kar chala gaya

ग़ज़ल

पत्थर में फ़न के फूल खिला कर चला गया

हफ़ीज़ ताईब

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पत्थर में फ़न के फूल खिला कर चला गया
कैसे अमिट नुक़ूश कोई छोड़ता गया

सिमटा तिरा ख़याल तो गुल-रंग अश्क था
फैला तो मिस्ल-ए-दश्त-ए-वफ़ा फैलता गया

सोचों की गूँज थी कि क़यामत की गूँज थी
तेरा सुकूत हश्र के मंज़र दिखा गया

या तेरी आरज़ू मुझे ले आई इस तरफ़
या मेरा शौक़ राह में सहरा बिछा गया

वो जिस को भूलने का तसव्वुर मुहाल था
वो अहद रफ़्ता रफ़्ता मुझे भूलता गया

जब उस को पास-ए-ख़ातिर-ए-आज़ुर्दगाँ नहीं
मुड़ मुड़ के क्यूँ वो दूर तलक देखता गया