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परिंदे पूछते हैं तुम ने क्या क़ुसूर किया | शाही शायरी
parinde puchhte hain tumne kya qusur kiya

ग़ज़ल

परिंदे पूछते हैं तुम ने क्या क़ुसूर किया

अब्बास ताबिश

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परिंदे पूछते हैं तुम ने क्या क़ुसूर किया
वो क्या कहें जिन्हें हिजरत ने घर से दूर किया

यही बहुत है कि उस अहद-ए-बे-पयम्बर में
कहीं चराग़ कहीं ख़्वाब ने ज़ुहूर किया

ये मेरा ख़ाक में मिलना बसा ग़नीमत है
कि मैं ने इज्ज़ की ख़ातिर बहुत ग़ुरूर किया

फ़लक से फेंक के देखा कि टूटने का नहीं
गिरा के अपनी निगाहों से चूर चूर किया

ग़ुबार-ए-दर-ब-दरी जिस ने कर दिया मुझ को
मुसाफ़िरों को उसी धूप ने खजूर किया