EN اردو
परिंदे बे-ख़बर थे सब पनाहें कट चुकी हैं | शाही शायरी
parinde be-KHabar the sab panahen kaT chuki hain

ग़ज़ल

परिंदे बे-ख़बर थे सब पनाहें कट चुकी हैं

ख़ुशबीर सिंह शाद

;

परिंदे बे-ख़बर थे सब पनाहें कट चुकी हैं
सफ़र से लौट कर देखा कि शाख़ें कट चुकी हैं

लरज़ जाता हूँ अब तो एक झोंके से भी अक्सर
मैं वो ख़ेमा हूँ जिस की सब तनाबें कट चुकी हैं

बहुत बे-रब्त रहने का ये ख़म्याज़ा है शायद
कि मंज़िल सामने है और राहें कट चुकी हैं

हमें तन्हाई के मौसम की आदत पड़ चुकी है
कि इस मौसम में अब तो कितनी रातें कट चुकी हैं

नए मंज़र के ख़्वाबों से भी डर लगता है उन को
पुराने मंज़रों से जिन की आँखें कट चुकी हैं