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पर्दे में हर आवाज़ के शामिल तो वही है | शाही शायरी
parde mein har aawaz ke shamil to wahi hai

ग़ज़ल

पर्दे में हर आवाज़ के शामिल तो वही है

नासिर काज़मी

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पर्दे में हर आवाज़ के शामिल तो वही है
हम लाख बदल जाएँ मगर दिल तो वही है

मौज़ू-ए-सुख़न है वही अफ़साना-ए-शीरीं
महफ़िल हो कोई रौनक़-ए-महफ़िल तो वही है

महसूस जो होता है दिखाई नहीं देता
दिल और नज़र में हद-ए-फ़ाज़िल तो वही है

हर चंद तिरे लुत्फ़ से महरूम नहीं हम
लेकिन दिल-ए-बेताब की मुश्किल तो वही है

गिर्दाब से निकले भी तो जाएँगे कहाँ हम
डूबी थी जहाँ नाव ये साहिल तो वही है

लुट जाते हैं दिन को भी जहाँ क़ाफ़िले वाले
हुशियार मुसाफ़िर कि ये मंज़िल तो वही है

वो रंग वो आवाज़ वो सज और वो सूरत
सच कहते हो तुम प्यार के क़ाबिल तो वही है

सद-शुक्र कि इस हाल में जीते तो हैं 'नासिर'
हासिल न सही काविश-ए-हासिल तो वही है