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पर्दा-ए-दर्द में आराम बटा करते हैं | शाही शायरी
parda-e-dard mein aaram baTa karte hain

ग़ज़ल

पर्दा-ए-दर्द में आराम बटा करते हैं

मुज़्तर ख़ैराबादी

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पर्दा-ए-दर्द में आराम बटा करते हैं
उस की दरगाह में इनआ'म बटा करते हैं

बाब-ए-साक़ी पे इलाही मिरा सूरज डूबे
शाम होते ही जहाँ जाम बटा करते हैं

उस के दर पर मुझे ऐ गर्दिश-ए-क़िस्मत ले चल
सब निकम्मों को जहाँ काम बटा करते हैं

प्यास में दीदा-ए-दरवेश ने ता'लीम ये दी
मय-कदे जाओ जहाँ जाम बटा करते हैं

दिल-ए-मुज़्तर को तसल्ली वही देगा 'मुज़्तर'
जिस की दरगाह में आराम बटा करते हैं