पंछियों की किसी क़तार के साथ
बाल-ओ-पर भी गए बहार के साथ
काम आसान तो नहीं फिर भी
जी रहे हैं दिल-ए-फ़िगार के साथ
आँसुओं की तरह वजूद मिरा
बहता जाता है आबशार के साथ
उड़ रहा है जो तेरी गलियों में
मैं भी शामिल हूँ उस ग़ुबार के साथ
शाम-ए-वहशत कहाँ पे ले आई
तू मुझे अपने इंतिज़ार के साथ
और भी इक हिसार है 'अज़हर'
शहर-ए-ज़िंदाँ के इस हिसार के साथ
ग़ज़ल
पंछियों की किसी क़तार के साथ
अज़हर अब्बास