पलकों पे सितारा सा मचलने के लिए था
वो शख़्स इन आँखों में पिघलने के लिए था
वो ज़ुल्फ़ हवाओं में बिखरने के लिए थी
और जिस्म मिरा धूप में जलने के लिए था
जिस रोज़ तराशे गए ये ज़ख़्म उसी रोज़
इक ज़ख़्म मिरी रूह में पलने के लिए था
उस ख़्वाब की ताबीर मुझे मिलती भी कैसे
वो ख़्वाब तो अफ़्सानों में ढलने के लिए था
जिस राह के पत्थर को 'रविश' कोस रहे थे
वो राह का पत्थर तो सँभलने के लिए था
ग़ज़ल
पलकों पे सितारा सा मचलने के लिए था
शमीम रविश