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पैक-ए-ख़याल भी है अजब क्या जहाँ-नुमा | शाही शायरी
paik-e-KHayal bhi hai ajab kya jahan-numa

ग़ज़ल

पैक-ए-ख़याल भी है अजब क्या जहाँ-नुमा

जोर्ज पेश शोर

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पैक-ए-ख़याल भी है अजब क्या जहाँ-नुमा
आया नज़र वो पास जो अपने से दूर था

उस माह-रू पे आँख किसी की न पड़ सकी
जल्वा था तूर का कि सरासर वो नूर था

देते न दिल जो तुम को तो क्यूँ बनती जान पर
कुछ आप की ख़ता न थी अपना क़ुसूर था

ज़र्रे की तरह ख़ाक में पामाल हो गए
वो जिन का आसमाँ पे सर-ए-पुर-ग़ुरूर था