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पहली बरसात की घटा छाई | शाही शायरी
pahli barsat ki ghaTa chhai

ग़ज़ल

पहली बरसात की घटा छाई

रिफ़अत अल हुसैनी

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पहली बरसात की घटा छाई
आज खिड़की से कुछ हवा आई

अपनी कुटिया में रोज़-ए-मातम है
उन के कोठे पे रोज़-ए-शहनाई

लू के मौसम पे फ़त्ह पाएगी
इक न इक दिन ज़रूर पुर्वाई

उस की पाज़ेब की सदा सुन कर
गुनगुनाती हुई सबा आई

इक तरफ़ ख़ाक-ओ-ख़ून का आलम
इक तरफ़ ऐश में है दाराई

शब में जब उस को ख़्वाब में देखा
बढ़ गई सुब्ह मेरी बीनाई