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पहले तो शहर भर में मिसाल आइने हुए | शाही शायरी
pahle to shahr bhar mein misal aaine hue

ग़ज़ल

पहले तो शहर भर में मिसाल आइने हुए

ख़ालिद महमूद ज़की

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पहले तो शहर भर में मिसाल आइने हुए
फिर गर्द से सरापा सवाल आइने हुए

चेहरा छुपाए फिरता है गहरे नक़ाब में
इक शख़्स को तो लौ की मिसाल आइने हुए

हम को सज़ा मिली कि उजाले थे आइने
सो अपनी जाँ पे सारा वबाल आइने हुए

फिर यूँ हुआ कि ज़ब्त की सूरत नहीं रही
और शहर-ए-बे-नवा के ग़ज़ाल आइने हुए

जिन के सबब से हम हुए मा'तूब शहर में
इक वक़्त आ गया वो ख़याल आइने हुए

वो दर्द जी उठा कि गरेबाँ थे तार तार
वो रुत उमड पड़ी कि निहाल आइने हुए