पानी मिट कर भी रह गया पानी
हुए क्या बात कह गया पानी
कट गया बूँद बूँद में पत्थर
चोट पत्थर की सह गया पानी
ख़्वाब भी बर्फ़ के घरौंदे थे
जब खुली आँख रह गया पानी
शोर कितना किया था लहरों ने
एक तूफ़ाँ में बह गहा पानी
ज़िंदगी नाम है रवानी का
जाते जाते ये कह गया पानी
हम नज़ारों को देखते ही रहे
पुल के नीचे से बह गया पानी

ग़ज़ल
पानी मिट कर भी रह गया पानी
इंद्र मोहन मेहता कैफ़