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पानी में भी प्यास का इतना ज़हर मिला है | शाही शायरी
pani mein bhi pyas ka itna zahr mila hai

ग़ज़ल

पानी में भी प्यास का इतना ज़हर मिला है

अली अकबर अब्बास

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पानी में भी प्यास का इतना ज़हर मिला है
होंटों पर आते हर क़तरा सूख रहा है

अंधे हो कर बादल भागे फिरते हैं
गाते गाते एक परिंदा आग हुआ है

फूल और फल तो ताज़ा कोंपल पर आते हैं
पीला पत्ता इस वहशत में टूट रहा है

गर्दिश गर्दिश चलने से ही कट पाएगा
चारों जानिब एक सफ़र का जाल बिछा है

उसी पेड़ के नीचे दफ़्न भी होना होगा
जिस की जड़ पर मैं ने अपना नाम लिखा है