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निगाहों से निकल कर जो गए हैं | शाही शायरी
nigahon se nikal kar jo gae hain

ग़ज़ल

निगाहों से निकल कर जो गए हैं

मुग़नी तबस्सुम

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निगाहों से निकल कर जो गए हैं
वो चेहरे आइनों में खो गए हैं

ज़मीं पर नूर की बारिश थी जिन से
सितारे आसमाँ में बो गए हैं

खिले थे जो चमन में गुल की सूरत
सबा के साथ रुख़्सत हो गए हैं

जलाने वाले यादों के दिए अब
चराग़-ए-जाँ बुझा कर सो गए हैं