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निगाहों से मेरी निगाहें बचाए | शाही शायरी
nigahon se meri nigahen bachae

ग़ज़ल

निगाहों से मेरी निगाहें बचाए

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

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निगाहों से मेरी निगाहें बचाए
चले आ रहे हैं वो तूफ़ाँ उठाए

लहू दिल का अश्कों में क्यूँ आ न जाए
कहाँ तक कोई राज़-ए-उल्फ़त छुपाए

उसी की है दुनिया उसी का ज़माना
जो सब कुछ हटा कर कभी कुछ न पाए

अभी कुछ है बाक़ी निशान‌‌‌‌-ए-नशेमन
कहो बर्क़ से और अभी ज़ुल्म ढाए

चले आएँगे ख़ुद वो बेताब हो कर
जुनून-ए-मोहब्बत मिरा बढ़ तो जाए

निराले हैं रस्म-ओ-रिवाज-ए-मोहब्बत
वही पार होता है जो डूब जाए

रहा एक आलम न 'इक़बाल' अपना
कभी रो दिए तो कभी मुस्कुराए