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नज़र नज़र से मिला कर कलाम कर आया | शाही शायरी
nazar nazar se mila kar kalam kar aaya

ग़ज़ल

नज़र नज़र से मिला कर कलाम कर आया

तारिक़ क़मर

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नज़र नज़र से मिला कर कलाम कर आया
ग़ुलाम शाह की नींदें हराम कर आया

कई चराग़ हवा के असर में आए थे
मैं एक जुगनू को उन का इमाम कर आया

ये किस की प्यास के छींटे पड़े हैं पानी पर
ये कौन जब्र का क़िस्सा तमाम कर आया

उतरती शाम के साए बहुत मलूल से थे
सो एक शब मैं वहाँ भी क़याम कर आया

ये और बात मिरे पाँव कट गए लेकिन
मैं शाहराह को इक राह-ए-आम कर आया

करूँ कलाम किसी और से मैं क्या 'तारिक़'
कि अपने लफ़्ज़ तो सब उस के नाम कर आया