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नज़र की धूप में आने से पहले | शाही शायरी
nazar ki dhup mein aane se pahle

ग़ज़ल

नज़र की धूप में आने से पहले

सरफ़राज़ ज़ाहिद

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नज़र की धूप में आने से पहले
गुलाबी था वो सँवलाने से पहले

सुना है कोई दीवाना यहाँ पर
रहा करता था वीराने से पहले

खिला करते थे ख़्वाबों में किसी के
तिरे तकिए पे मुरझाने से पहले

मोहब्बत आम सा इक वाक़िआ था
हमारे साथ पेश आने से पहले

नज़र आते थे हम इक दूसरे को
ज़माने को नज़र आने से पहले

तअज्जुब है कि इस धरती पे कुछ लोग
जिया करते थे मर जाने से पहले

रहा करता था अपने ज़ोम में वो
हमारे ध्यान में आने से पहले

मुज़य्यन थी किसी के ख़ाल-ओ-ख़द से
हमारी शाम पैमाने से पहले