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नया अब सिलसिला जोड़ा न जाए | शाही शायरी
naya ab silsila joDa na jae

ग़ज़ल

नया अब सिलसिला जोड़ा न जाए

प्रबुद्ध सौरभ

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नया अब सिलसिला जोड़ा न जाए
पुरानों को मगर तोड़ा न जाए

मुझे जो छोड़ जाना चाहता है
अगर जाए तो फिर थोड़ा न जाए

बहुत नुक़सान करती है ख़ुदी का
अना का रुख़ अगर मोड़ा न जाए

तमन्ना आसमानों के सफ़र की
मगर आँगन कि बस छोड़ा न जाए