नमी थी आँख में लेकिन इक ए'तिमाद भी था
मुझे तो हौसला जीने का उस के बा'द भी था
बुझे हुए दर-ओ-दीवार जानते होंगे
कभी यहाँ तिरे जल्वों का इंइक़ाद भी था
वो एक इस्म-ए-तवालत जो शब की काट सके
वो इस्म आलम-ए-वहशत में मुझ को याद भी था
ख़िज़ाँ-नसीब सही आज शाख़-सार-ए-हयात
हवा का आना कभी सेहन-ए-दिल में साद भी था
सितारा देख के निकली थी मैं सफ़र के लिए
मगर सितारे को तक़दीर से इनाद भी था

ग़ज़ल
नमी थी आँख में लेकिन इक ए'तिमाद भी था
नरजिस अफ़रोज़ ज़ैदी