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नहीं मिटतीं तिरी यादें नदी में ख़त बहाने से | शाही शायरी
nahin miTtin teri yaaden nadi mein KHat bahane se

ग़ज़ल

नहीं मिटतीं तिरी यादें नदी में ख़त बहाने से

प्रमोद शर्मा असर

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नहीं मिटतीं तिरी यादें नदी में ख़त बहाने से
ये अक्सर लौट आती हैं किसी दिलकश बहाने से

भुला पाया नहीं मैं दौर-ए-माज़ी के हसीं लम्हे
कभी तू याद भी कर ले तअ'ल्लुक़ ये पुराने से

नमक-पाशी ज़माने ने मिरे ज़ख़्मों पे की पैहम
मगर मैं बाज़ कब आया हूँ फिर भी मुस्कुराने से

तुम्हें जिस के लिए हम ने चुना वो काम भी करना
मिले तुम को अगर फ़ुर्सत हमारा घर जलाने से

मुक़ाबिल आइने के आ गया है भूल से शायद
मुझे लगता है कुछ ऐसा ही उस के तिलमिलाने से

क़फ़स को तोड़ने की अब के उस ने भी तो ठानी है
यही पैग़ाम मिलता है परों को फड़फड़ाने से

मुझे मालूम है हरगिज़ पलट कर आ नहीं सकता
गुज़ारिश है मगर मेरी 'असर' गुज़रे ज़माने से