नहीं है यूँ के दमा-दम हवा ने रक़्स किया
शदीद हब्स था कम कम हवा ने रक़्स किया
बस एक मैं ही वहाँ पर तवाफ़ में तो न था
दरून-ए-शहर-ए-मुकर्रम हवा ने रक़्स किया
चराग़ क़त्ल हुआ तो ख़ुशी से मक़्तल में
लगा के ना'रा-ए-रक़सम हवा ने रक़्स किया
तमाम दिन की तमाज़त के बा'द रात गए
गिरी जो फूल पे शबनम हवा ने रक़्स किया
समुंदरों के सफ़र से पलट के आई तो
ज़रा ज़रा सी हुई नम हवा ने रक़्स किया

ग़ज़ल
नहीं है यूँ के दमा-दम हवा ने रक़्स किया
अासिफ़ रशीद असजद