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नफ़स नफ़स में हूँ इक बू-ए-सद-गुलाब लिए | शाही शायरी
nafas nafas mein hun ek bu-e-sad-gulab liye

ग़ज़ल

नफ़स नफ़स में हूँ इक बू-ए-सद-गुलाब लिए

कैफ़ अज़ीमाबादी

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नफ़स नफ़स में हूँ इक बू-ए-सद-गुलाब लिए
मैं जागता हूँ निगाहों में तेरे ख़्वाब लिए

हमारे अहद के लोगों को क्या हुआ यारो
वो जी रहे हैं मगर रेत का सराब लिए

मैं भूल सकता नहीं हसरत-ए-नज़र उस की
वो एक शख़्स जो गुज़रा है इज़्तिराब लिए

उदास रात की तारीकियों ने छेड़ा है
अब आ भी जाओ निगाहों में माहताब लिए

ये चिलचिलाती हुई धूप जल रहा है बदन
गुज़र रही है यूँही हसरत-ए-सहाब लिए