EN اردو
नाला जिधर मेरा गुज़र कर गया | शाही शायरी
nala jidhar mera guzar kar gaya

ग़ज़ल

नाला जिधर मेरा गुज़र कर गया

मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार

;

नाला जिधर मेरा गुज़र कर गया
तीर सा हर दिल में असर कर गया

दिल न रहा आप में और मैं ब-ख़ुद
मेरी तरफ़ जब वो नज़र कर गया

खोल के ज़ुल्फ़ों के तईं चेहरा पर
यार बहम शाम-ओ-सहर कर गया

अहल-ए-हवस रात गली में तिरी
जाने से ऐ शोख़ हज़र कर गया

और जो मुझ सा था कोई जाँ-फ़िशाँ
दर पे तिरे जी से गुज़र कर गया

देखियो साबित-क़दमी क़ैस की
इश्क़ में क्या उम्र बसर कर गया

राह-ए-ख़तरनाक-ए-मोहब्बत को तय
बा-क़दम दीदा-ए-तर कर गया

कोई था कूचे में सनम के जो आज
गिर्या-ए-ख़ूँ ता-ब-कमर कर गया

अक़्ल पे नाज़ाँ हूँ 'जहाँदार' की
दिल न दिया उस को हुनर कर गया