नाकामी-ए-क़िस्मत का गिला छोड़ दिया है
तदबीर से तक़दीर का रुख़ मोड़ दिया है
वो जुर्म भी इक अज़्मत-ए-किरदार है जिस ने
टूटा हुआ इक रिश्ता-ए-दिल जोड़ दिया है
दिल डूब चला आख़िर-ए-शब ख़ुश्क हैं आँखें
आ जा कि सितारों ने भी दम तोड़ दिया है
बहते हुए देखे हैं उधर वक़्त के धारे
रुख़ हम ने इरादों का जिधर मोड़ दिया है
फ़नकार का एहसास-ए-ज़िया-बार था जिस में
हालात ने वो शीश-महल तोड़ दिया है
अंदाज़-ए-ग़ज़ल आप का क्या ख़ूब है 'रज़्मी'
महसूस ये होता है क़लम तोड़ दिया है
ग़ज़ल
नाकामी-ए-क़िस्मत का गिला छोड़ दिया है
मुज़फ़्फ़र रज़्मी