EN اردو
न था दिल हमारा कभी ग़म से वाक़िफ़ | शाही शायरी
na tha dil hamara kabhi gham se waqif

ग़ज़ल

न था दिल हमारा कभी ग़म से वाक़िफ़

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम

;

न था दिल हमारा कभी ग़म से वाक़िफ़
मगर अब हुआ आप के दम से वाक़िफ़

ये बतलाओ हम को भी पहचानते हो
हमें क्या जो हो सारे आलम से वाक़िफ़

अबस आती है रोज़ घर घर के बदली
नहीं क्या मिरे दीदा-ए-नम से वाक़िफ़

उन्हें हाल-ए-दिल किस तरह लिख के भेजें
न हम उन से वाक़िफ़ न वो हम से वाक़िफ़

दिखाया असर आह ने अपनी 'अंजुम'
कि होते चले हैं वो अब हम से वाक़िफ़