न रस्ता न कोई डगर है यहाँ
मगर सब की क़िस्मत सफ़र है यहाँ
सुनाई न देगी दिलों की सदा
दिमाग़ों में वो शोर-ओ-शर है यहाँ
हवाओं की उँगली पकड़ कर चलो
वसीला यही मो'तबर है यहाँ
न इस शहर-ए-बे-हिस को सहरा कहो
सुनो इक हमारा भी घर है यहाँ
पलक भी झपकते हो 'मख़मूर' क्यूँ
तमाशा बहुत मुख़्तसर है यहाँ

ग़ज़ल
न रस्ता न कोई डगर है यहाँ
मख़मूर सईदी