EN اردو
न पूछो अक़्ल की चर्बी चढ़ी है उस की बोटी पर | शाही शायरी
na puchho aql ki charbi chaDhi hai uski boTi par

ग़ज़ल

न पूछो अक़्ल की चर्बी चढ़ी है उस की बोटी पर

सलीम अहमद

;

न पूछो अक़्ल की चर्बी चढ़ी है उस की बोटी पर
किसी शय का असर होता नहीं कम-बख़्त मोटी पर

कफ़न से दूसरों के जो सिलाते हैं लिबास अपना
वो जज़्बे हँस रहे हैं इश्क़-ए-सादा की लंगोटी पर

यही ऐश एक दिन अहल-ए-हवस का ख़ून चाटेगा
अभी कुछ दिन लगा रक्खें वो इस कुत्ते को रोटी पर

न जाने कैसे नाज़ुक तार को मिज़राब ने छेड़ा
कि वज्द आख़िर उन्हें भी आ गया नोचा कसौटी पर

मोहब्बत कुछ बड़ी है उम्र में और है हवस छोटी
मगर दिल है कि है सौ जान से लहलूट छोटी पर