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न में यक़ीन में रख्खूँ न तो गुमान में रख | शाही शायरी
na mein yaqin mein rakhkhun na to guman mein rakh

ग़ज़ल

न में यक़ीन में रख्खूँ न तो गुमान में रख

फ़िरदौस गयावी

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न में यक़ीन में रख्खूँ न तो गुमान में रख
है सब की बात तो फिर सब के दरमियान में रख

वो धूप में जो रहेगा तो रूप खो देगा
छुपा ले सीने में पलकों के साएबान में रख

मिरे बदन को तू अपने बदन की आँच न दे
जो हो सके तो मिरी जान अपनी जान में रख

न बैठने दे कभी अज़्म के परिंदे को
उड़ान भूल न जाए सदा उड़ान में रख

मोहब्बतें नहीं मिलतीं मोहब्बतों के बग़ैर
उसे न भूल तू 'फ़िरदौस' अपने ध्यान में रख