EN اردو
मुस्कुराती आँखों को दोस्तों की नम करना | शाही शायरी
muskuraati aankhon ko doston ki nam karna

ग़ज़ल

मुस्कुराती आँखों को दोस्तों की नम करना

राम रियाज़

;

मुस्कुराती आँखों को दोस्तों की नम करना
राम ऐसे अफ़्साने छोड़ दो रक़म करना

अब कहाँ वो पहली सी फ़ुर्सतें मयस्सर हैं
सारा दिन सफ़र करना सारी रात ग़म करना

सब्र की रिवायत में जब्र की अदालत में
लब कभी न वा करना सर कभी न ज़ख़्म करना

मैं गुनाहगारों में साहब-ए-तरीक़त हूँ
दाख़िली शहादत पर मेरा सर क़लम करना

ज़िंदगी तो सपना है कौन 'राम' अपना है
क्या किसी को दुख देना क्या किसी का ग़म करना