मुश्किलें कितनी हैं पोशीदा इस आसानी में
सोना पड़ता है हमें ख़्वाब की निगरानी में
ख़ुद से मिलना हो तो फ़ुर्सत के पलों में मिलना
अक्स दिखते ही नहीं बहते हुए पानी में
बा'द मुद्दत के मिला था वो मगर था कैसा
देखना भूल गया उस को मैं हैरानी में
तेरी याद आई तो हैरत भी नहीं है मुझ को
याद अपना ही तो आता है परेशानी में
क्या हुआ जिस ने यक़ीं को तिरे मिस्मार किया
तू ने क्या देख लिया लम्हा-ए-इम्कानी में

ग़ज़ल
मुश्किलें कितनी हैं पोशीदा इस आसानी में
ज़िया ज़मीर