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मुसव्विर अपने तसव्वुर का ढूँढता है दवाम | शाही शायरी
musawwir apne tasawwur ka DhunDhta hai dawam

ग़ज़ल

मुसव्विर अपने तसव्वुर का ढूँढता है दवाम

सईदुल ज़फर चुग़ताई

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मुसव्विर अपने तसव्वुर का ढूँढता है दवाम
न जाम-ए-जम न विसाल-ए-सनम न शोहरत-ओ-नाम

हयात जब्र-ए-मुसलसल है तू है जब्र-शिकन
हर एक गाम पे आज़ादगी का तुझ को सलाम

तसव्वुरात के फूलों में रंग भरता है
हक़ीक़तों की कड़ी धूप देती है इनआ'म

सहर भी होगी नसीम-ए-सहर भी गाएगी
मगर ये रात मोहब्बत चराग़ ज़हर के जाम

शराब पी भी तो पी चश्म-ए-मस्त साक़ी से
मगर चढ़ाए पिया पे ग़म-ए-हयात के जाम

मैं अपनी शम्अ' जलाता रहा हूँ तौबा पर
मैं अपने शो'ले से होता रहा हूँ गर्म-ए-कलाम

उसी से मेरे रग-ओ-पै में आतिश-ए-सय्याल
उसी से मेरे तसव्वुर के ख़म में माह-ए-तमाम