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मुँह से जो मिलाइए किसी को | शाही शायरी
munh se jo milaiye kisi ko

ग़ज़ल

मुँह से जो मिलाइए किसी को

शऊर बलगिरामी

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मुँह से जो मिलाइए किसी को
क्यूँ दाग़ लगाइए किसी को

आईना-ए-कज-नुमा हैं अहबाब
सूरत न दिखाइए किसी को

जो सूरत-ए-ज़ख़्म ख़ून रो दे
ऐसा न हँसाइए किसी को

कुछ ख़ूब नहीं है आदत-ए-ज़ुल्म
हरगिज़ न सताइए किसी को

दीवार से कोई फोड़ेगा सर
दर से न उठाइए किसी को

मुश्ताक़ है कोई ज़ेर-ए-दीवार
आवाज़ सुनाइए किसी को

मुश्किल है बिगाड़ कर बनाना
हरगिज़ न मिटाइए किसी को

इस फ़िक्र में है मिरा परी-रू
दीवाना बनाइए किसी को

होता है 'शुऊर' दर्द दिल में
फोड़ा ये दिखाइए किसी को