मुँह से जो मिलाइए किसी को
क्यूँ दाग़ लगाइए किसी को
आईना-ए-कज-नुमा हैं अहबाब
सूरत न दिखाइए किसी को
जो सूरत-ए-ज़ख़्म ख़ून रो दे
ऐसा न हँसाइए किसी को
कुछ ख़ूब नहीं है आदत-ए-ज़ुल्म
हरगिज़ न सताइए किसी को
दीवार से कोई फोड़ेगा सर
दर से न उठाइए किसी को
मुश्ताक़ है कोई ज़ेर-ए-दीवार
आवाज़ सुनाइए किसी को
मुश्किल है बिगाड़ कर बनाना
हरगिज़ न मिटाइए किसी को
इस फ़िक्र में है मिरा परी-रू
दीवाना बनाइए किसी को
होता है 'शुऊर' दर्द दिल में
फोड़ा ये दिखाइए किसी को
ग़ज़ल
मुँह से जो मिलाइए किसी को
शऊर बलगिरामी