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मुँह फेर कर वो कहते हैं बस मान जाइए | शाही शायरी
munh pher kar wo kahte hain bas man jaiye

ग़ज़ल

मुँह फेर कर वो कहते हैं बस मान जाइए

बेख़ुद देहलवी

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मुँह फेर कर वो कहते हैं बस मान जाइए
इस शर्म इस लिहाज़ के क़ुर्बान जाइए

भूले नहीं हैं हम वो मुदारात रात की
जी चाहता है फिर कहीं मेहमान जाइए

बोले वो मुस्कुरा के बहुत इल्तिजा के ब'अद
जी तो ये चाहता है तिरी मान जाइए

आगे है घर रक़ीब का बस साथ हो चुका
अब आप का ख़ुदा है निगहबान जाइए

उल्फ़त जता के दोस्त को दुश्मन बना लिया
'बेख़ुद' तुम्हारी अक़्ल के क़ुर्बान जाइए