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मुँह मिरा एक एक तकता था | शाही शायरी
munh mera ek ek takta tha

ग़ज़ल

मुँह मिरा एक एक तकता था

हफ़ीज़ जौनपुरी

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मुँह मिरा एक एक तकता था
उस की महफ़िल में मैं तमाशा था

हम जो तुझ से फिरें ख़ुदा से फिरें
याद है कुछ ये क़ौल किस का था

वस्ल में भी रहा फ़िराक़ का ग़म
शाम ही से सहर का खटका था

अपनी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं
हुस्न ही दिल-फ़रेब इस का था

फ़ातिहा पढ़ रहे थे वो जब तक
मेरी तुर्बत पर एक मेला था

नामा-बर नामा जब दिया तू ने
कुछ ज़बानी भी उस ने पूछा था

अब कुछ इस का भी ए'तिबार नहीं
पहले दिल पर बड़ा भरोसा था

वो जो रुक रुक के पूछते थे हाल
दिल में रह रह के दर्द उठता था

जूठा वा'दा भी ऐ 'हफ़ीज़' उन का
ज़िंदगी का मिरी सहारा था