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मुँह अपना ख़ुश्क है और चश्म तर है | शाही शायरी
munh apna KHushk hai aur chashm tar hai

ग़ज़ल

मुँह अपना ख़ुश्क है और चश्म तर है

मीर हसन

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मुँह अपना ख़ुश्क है और चश्म तर है
तिरे ग़म में ये सैर-ए-बहर-ओ-बर है

ख़बर ले दिल की उस से जिस का घर है
किसी के घर की हम को क्या ख़बर है

वो अब क्यूँकर न खींचे आप को दूर
हमारे चाहने का ये असर है

हमें कुछ वो नहीं हैं आह वर्ना
वही है शाम और वो ही सहर है

हमें देखो न देखो तुम हमें तो
तुम्हारा देखना मद्द-ए-नज़र है

सुना ले मरते मरते गुल को बुलबुल
कोई नाला तिरे दिल में अगर है

उठाता है जो रोज़ उठ दर्द-ओ-ग़म को
किसे ताक़त है मेरा ही जिगर है

कभी बस्ता था इक आलम यहाँ भी
ये दिल जो अब कि उजड़ा सा नगर है

कहा चाहे है कुछ कहता है कुछ और
'हसन' ध्यान इन दिनों तेरा किधर है