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मुमकिन है वो दिन आए कि दुनिया मुझे समझे | शाही शायरी
mumkin hai wo din aae ki duniya mujhe samjhe

ग़ज़ल

मुमकिन है वो दिन आए कि दुनिया मुझे समझे

रसा चुग़ताई

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मुमकिन है वो दिन आए कि दुनिया मुझे समझे
लाज़िम नहीं हर शख़्स ही अच्छा मुझे समझे

है कोई यहाँ शहर में ऐसा कि जिसे मैं
अपना न कहूँ और वो अपना मुझे समझे

हर-चंद मिरे साथ रहे अहल-ए-बसीरत
कुछ अहल-ए-बसीरत थे कि तन्हा मुझे समझे

मैं आज सर-ए-आतिश-ए-नमरूद खड़ा हूँ
अब देखिए ये ख़ल्क़-ए-ख़ुदा क्या मुझे समझे