EN اردو
मुझे रोना नहीं आवाज़ भी भारी नहीं करनी | शाही शायरी
mujhe rona nahin aawaz bhi bhaari nahin karni

ग़ज़ल

मुझे रोना नहीं आवाज़ भी भारी नहीं करनी

अफ़ज़ल ख़ान

;

मुझे रोना नहीं आवाज़ भी भारी नहीं करनी
मोहब्बत की कहानी में अदाकारी नहीं करनी

हवा के ख़ौफ़ से लिपटा हुआ हूँ ख़ुश्क टहनी से
कहीं जाना नहीं जाने की तय्यारी नहीं करनी

तहम्मुल ऐ मोहब्बत हिज्र पथरीला इलाक़ा है
तुझे इस रास्ते पर तेज़-रफ़्तारी नहीं करनी

हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
यूँही बाज़ार आए हैं ख़रीदारी नहीं करनी

ग़ज़ल को कम-निगाहों की पहुँच से दूर रखता हूँ
मुझे बंजर दिमाग़ों में शजर-कारी नहीं करनी

वसिय्यत की थी मुझ को क़ैस ने सहरा के बारे में
ये मेरा घर है इस की चार-दीवारी नहीं करनी