मुझे मालूम है मैं सारी दुनिया की अमानत हूँ
मगर वो लम्हा जब मैं सिर्फ़ अपना हो सा जाता हूँ
मैं तुम से दूर रहता हूँ तो मेरे साथ रहती हो
तुम्हारे पास आता हूँ तो तन्हा हो सा जाता हूँ
मैं चाहे सच ही बोलूँ हर तरह से अपने बारे में
मगर तुम मुस्कुराती हो तो झूटा हो सा जाता हूँ
तिरे गुल-रंग होंटों से दहकती ज़िंदगी पी कर
मैं प्यासा और प्यासा और प्यासा हो सा जाता हूँ
तुझे बाँहों में भर लेने की ख़्वाहिश यूँ उभरती है
कि मैं अपनी नज़र में आप रुस्वा हो सा जाता हूँ
ग़ज़ल
मुझे मालूम है मैं सारी दुनिया की अमानत हूँ
जाँ निसार अख़्तर