मुझे कल अचानक ख़याल आ गया आसमाँ खो न जाए
समुंदर को सर करते करते कहीं बादबाँ खो न जाए
कोई ना-मुरादी की यलग़ार सीने को छलनी न कर दे
कहीं दश्त-ए-अन्फ़ास में सब्र का कारवाँ खो न जाए
ये हँसता हुआ शोर संजीदगी के लिए इम्तिहाँ है
सो मोहतात रहना कि तहज़ीब-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ खो न जाए
इसे वक़्त का जब्र कहिए कि बेचारगी जिस्म ओ जाँ की
मकाँ खोने वालों को डर है कि अब ला-मकाँ खो न जाए
मैं अपने इरादों की गठरी उठाए कहीं जा न पाया
हमेशा ये धड़का रहा महफ़िल-ए-दोस्ताँ खो न जाए
ये क़िस्सों की रिम-झिम में भीगा हुआ हल्क़ा-ए-गुफ़्तुगू है
यहाँ चुप ही रहना कि तासीर-ए-लफ़्ज़-ओ-बयाँ खो न जाए
यहाँ किस को फ़ुर्सत कि आग़ाज़ ओ अंजाम को याद रक्खे
सभी को ये तशवीश है वक़्त का दरमियाँ खो न जाए
ये बाज़ार-ए-नफ़अ-ओ-ज़रर है यहाँ बे-तवाज़ुन न होना
समेटो अगर सूद तो ध्यान रखना ज़ियाँ खो न जाए
उठो 'अज़्म' इस आतिश-ए-शौक़ को सर्द होने से रोको
अगर रुक न पाए तो कोशिश ये करना धुआँ खो न जाए
ग़ज़ल
मुझे कल अचानक ख़याल आ गया आसमाँ खो न जाए
अज़्म बहज़ाद