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मुझे ग़रज़ है मिरी जान ग़ुल मचाने से | शाही शायरी
mujhe gharaz hai meri jaan ghul machane se

ग़ज़ल

मुझे ग़रज़ है मिरी जान ग़ुल मचाने से

जौन एलिया

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मुझे ग़रज़ है मिरी जान ग़ुल मचाने से
न तेरे आने से मतलब न तेरे जाने से

अजीब है मिरी फ़ितरत कि आज ही मसलन
मुझे सुकून मिला है तिरे न आने से

इक इज्तिहाद का पहलू ज़रूर है तुझ में
ख़ुशी हुई तिरे ना-वक़्त मुस्कुराने से

ये मेरा जोश-ए-मोहब्बत फ़क़त इबारत है
तुम्हारी चम्पई रानों को नोच खाने से

मोहज़्ज़ब आदमी पतलून के बटन तो लगा
कि इर्तिक़ा है इबारत बटन लगाने से