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मुझ तही-जाँ से तुझे इंकार पहले तो न था | शाही शायरी
mujh tahi-jaan se tujhe inkar pahle to na tha

ग़ज़ल

मुझ तही-जाँ से तुझे इंकार पहले तो न था

अब्बास ताबिश

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मुझ तही-जाँ से तुझे इंकार पहले तो न था
तेरा और मेरे लिए दीवार पहले तो न था

हुस्न ने सौंपी है ये कैसी निगूँ-सारी मुझे
मैं किसी का आइना-बरदार पहले तो न था

इस तरह तो पा-ब-जौलाँ हम न फिरते थे कभी
इन गली-कूचों में ये बाज़ार पहले तो न था

अब कहाँ से आई उस काफ़िर के दिल में रौशनी
आइना हल्क़ा-ब-गोश-ए-यार पहले तो न था

'ताबिश' इक दरयूज़ा-गर को बाज़ रखने के लिए
कोई दरवाज़ा पस-ए-दीवार पहले तो न था